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ग़ज़ल : "अवसर-ए-इंतेखाब" कर ली इतनी तोहमत अब कुछ ज

ग़ज़ल : "अवसर-ए-इंतेखाब"
कर ली इतनी तोहमत अब कुछ जतन कीजिए,
अब जो भी कीजिए भलाई-ए-वतन कीजिए।
यहां सारे मुफलिस भूखे और प्यासे मर रहे है,
कुछ मयस्सर नहीं गर तो इंतजाम-ए-कफ़न कीजिए।
हवस-ए-निज़ाम तो यहां बहुतों को है मगर,
खातिर-ए-वतन अपने ख्वाब को दफ़न कीजिए।
यहां जुमलों से भूख-ए-अवाम नहीं मिटती,
मगर यह खोखले वादे जरा कुछ कम कीजिए।
शायद समझ लिया है कमजर्फ उन पहरेदार-ए-मुल्क को,
गर नहीं है तनिक यकीन तो उनके हवाले वतन कीजिए।
यूं तो हुई है बहुत कोशिशें मुल्क को बा‌ंटने की,
ऐसी ज़हरीली मंशाओ का जल्द दमन कीजिए।
इन सियासतदानों ने बेड़ा गर्क कर रखा है मुल्क का,
अवसर-ए-इंतेखाब है तो सफ़ाई-ए-चमन कीजिए।
जो मज़हबी फासला है लोगो के बीच मुल्क में,
इसे खत्म कर स्थापित चैन-ओ-अमन कीजिए।
अवाम-ए-मुल्क को जगाने का काम तुम्हारा है "राही",
तुम लिखकर ऐसी ही ग़ज़लें उनकी भंग शयन कीजिए। 2019 लोक सभा चुनाव
व्यंग ओ नसीहत
#200quotes
ग़ज़ल : "अवसर-ए-इंतेखाब"
कर ली इतनी तोहमत अब कुछ जतन कीजिए,
अब जो भी कीजिए भलाई-ए-वतन कीजिए।
यहां सारे मुफलिस भूखे और प्यासे मर रहे है,
कुछ मयस्सर नहीं गर तो इंतजाम-ए-कफ़न कीजिए।
हवस-ए-निज़ाम तो यहां बहुतों को है मगर,
खातिर-ए-वतन अपने ख्वाब को दफ़न कीजिए।
यहां जुमलों से भूख-ए-अवाम नहीं मिटती,
मगर यह खोखले वादे जरा कुछ कम कीजिए।
शायद समझ लिया है कमजर्फ उन पहरेदार-ए-मुल्क को,
गर नहीं है तनिक यकीन तो उनके हवाले वतन कीजिए।
यूं तो हुई है बहुत कोशिशें मुल्क को बा‌ंटने की,
ऐसी ज़हरीली मंशाओ का जल्द दमन कीजिए।
इन सियासतदानों ने बेड़ा गर्क कर रखा है मुल्क का,
अवसर-ए-इंतेखाब है तो सफ़ाई-ए-चमन कीजिए।
जो मज़हबी फासला है लोगो के बीच मुल्क में,
इसे खत्म कर स्थापित चैन-ओ-अमन कीजिए।
अवाम-ए-मुल्क को जगाने का काम तुम्हारा है "राही",
तुम लिखकर ऐसी ही ग़ज़लें उनकी भंग शयन कीजिए। 2019 लोक सभा चुनाव
व्यंग ओ नसीहत
#200quotes