याद है मुझे वो मेरी बचपन की ख्वाहिशे शौक था क्रिकेट खेलने की उमग थी कुछ इसी में कर गुजरने की...बचपना जरूर थी भरी -परी लेकिन क्रिकेट खेलने की जूनून सिद्द्त वाली थी वक़्त बदलती गई ख्वाहिशे टूटती गई ना जाने कितनो ने मज़ाक बनाया, कितनों ने अपने उपदेश दिया इस ख्वाहिशेको दफ़न कर दू वक़्त ढलता गया मैं भी बदलता गया मेरी जूनून ख्वाहिशे कही सिमटती चली गई मैं भी खुद की ही सपनों को भूलता गया सबों के हिसाब से ज़िन्दगी जीता गया क्रिकेटर बनने की ख्वाहिशे बस एक ख्वाहिश बन कर ठहर गई पीछे मुर कर देखता हूँ खुद की ज़िन्दगी तो सोचता हूँ खुदा ने मेरी पहली ख्वाहिश जरूर तोड़ी है लेकिन उस खुदा ने भी सोचा होगा कुछ जो होगा मेरे हिस्से में सबसे बेहतरीन होगा मेरे काबिलियत के हिसाब से मिलेगी मुझे भी सफलता शायद उस दिन एहसास होगा मुझे जो ना कर सका मैं वो होंगी मेरे काबिल नहीं और जो सफलता मिलेगी वो होंगी खुदा की मेहरबानी ©Shakshi #Cticket मेरी तो नहीं लेकिन ये कबिता ना जाने कितनों की सपनों को आँखो के सामने ले आएगी