नारी सम्मान में 🤱🏻🤱🏻🤱🏻🤱🏻🤱🏻 न आना है अब दुबारा,मुझको इस संसार में, बड़ रही है रुची यहाँ पर हैवानों की बलात्कार में। जन्म न लूँगी मैं दुबारा, हमको है हैवानों ने मारा, दर्द न झेल सकूँगी अब मैं, यहाँ हद से ज्यादा है हत्यारा। मैंने जीवन की चाँह है छोड़ी,गई हैवानियत से हार मैं। औरत बन जन्मी हूँ मैं इसमें मेरा क्या दोष है, मानव दानव बन बैठा है बचा न उसको होश है, कलयुग में है कामवासना होगा क्या इसका नाशना? नारी बनकर हूँ मैं जन्मी होता मुझे अफसोश है। अशुरी हुई आत्मा इनकी वुद्धि विलीन अत्याचार में। न जाने कितनी प्रियंका, मन में करती हैं अब शंका, न जाने कब आ जाए रावण, अपनी छोड़छाड़ के लंका। हैं कलयुग के कामी रावण मेरे बैठी बात कपार में। वलात्कार को अब विराम दो, फाँसी इनको सरेआम दो बिनती करती है हर नारी बचे न एक भी वलत्कारी माँ-बेटी-बहू-बहिन को रामराज्य सा आवाम दो। कर दो बस इतना काम तुम मानूँगी आभार मैं। जब भी जाऊँ अकेली राहों में, देखूँ सबकी सम्मान निगाहों में, न मचले मन किसी मनचले का न सूखे पानी मेरे गले का न डर बैठे दिल में मेरे सूनसान जगाहों में। सुरक्षा घेरा हो अब मेरा लक्ष्मणरेखा की किनार में। लेखक सर्वेन्द्र सिहँ सनातनी 9927099136 ©SARVENDRA SINGH नारी सम्मान में