आओ हम प्रत्येक व्यक्ति में घोषित करें- उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत- ‘उठो, जागो और जब तक तुम अपने अंतिम ध्येय तक नहीं पहुँच जाते, तब तक चैन न लो’। उठो, जागो- निर्बलता की इस मोहनिद्रा से जाग जाओ। वास्तव में कोई भी दुर्बल नहीं है। आत्मा अनंत, सर्वशक्तिसंपन्न और सर्वज्ञ है। इसलिए उठो, अपने वास्तविक रूप को प्रकट करो। तुम्हारे अंदर जो भगवान् है, उसकी सत्ता को ऊँचे स्वर में घोषित करो, उसे अस्वीकार मत करो। -- स्वामी विवेकानन्द {वि. सा. : ५: कोलंबो से अल्मोड़ा तक: वेदांत का उद्देश्य} #VKendra50 #Swaraj75 ©Sunil Singh #सनातन संस्कृति संवाद एवं परिचर्चा