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कभी मिल ,तो तुझसे पूंछू इक बात जिंदगी। तेरे नखरों

कभी मिल ,तो तुझसे पूंछू
इक बात जिंदगी।
तेरे नखरों का क्या है 
ये राज़ जिंदगी ?
भोला–भाला सा है जो,
इक पल का ये जीवन;
उसको भी तू नहीं आती 
क्यूं रास जिंदगी।
न जलते हैं न बुझते हैं 
ख्वाहिशों के चिराग़। 
मध्यम लौ के मानिन्द ,
बस फड़फड़ाती है क्यूं सांस ?
सुकूं भी नहीं है, 
उलझने भी नहीं है।
सच भी नही है,
कुछ झूठ भी नही है।
इनके दरमियां क्यूं है ,
फिर आस जिंदगी ?
तेरे नखरों का क्या है
ये राज़ जिंदगी..........?

©$ubha$"शुभ"
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#Uशुभ#कभी_मिल_तो_पूंछू

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