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ग़ज़ल किया है इज़हार-ए-प्यार तो थोड़ा सबर कीजिए, क

ग़ज़ल
किया है इज़हार-ए-प्यार तो थोड़ा सबर कीजिए,
क्या अंजाम होगा इसका इंतजार मगर कीजिए।

इतना आसान तो नहीं है इश्क़ लड़ाना मगर,
अब लड़ा ही लिया है तो फिर बसर कीजिए।

ज़माने को तो है अधूरे किस्से सुनने का शौक,
उनके लिए ही तय यह बेकार सफ़र कीजिए।

मालूम है इस कश्ती-ए-उल्फत की किस्मत,
फिर भी तगाफुल ताकीद-ए-कहर कीजिए।

शायद सुरूर-ए-दर्द भी बढ़ी जमाल चीज़ है,
मयस्सर नहीं है गर तो अभी मयस्सर कीजिए।

हो रही है लगातार जो अश्कबारी शबभर से,
इसमें अफसोस-ए-गुस्ताख़ी भीगकर कीजिए।

इस जाम-ए-जफा का नशा ही अलग है राही,
इस ज़ालिम मोहब्बत को घोषित ज़हर कीजिए।  #कश्ती_ए_उल्फत #ताकीद_ए_कहर #सुरूर_ए_दर्द  #अश्कबारी #शबभर  #अफसोस_ए_गुस्ताख़ी #जाम_ए_जफा
#राहीनामा
ग़ज़ल
किया है इज़हार-ए-प्यार तो थोड़ा सबर कीजिए,
क्या अंजाम होगा इसका इंतजार मगर कीजिए।

इतना आसान तो नहीं है इश्क़ लड़ाना मगर,
अब लड़ा ही लिया है तो फिर बसर कीजिए।

ज़माने को तो है अधूरे किस्से सुनने का शौक,
उनके लिए ही तय यह बेकार सफ़र कीजिए।

मालूम है इस कश्ती-ए-उल्फत की किस्मत,
फिर भी तगाफुल ताकीद-ए-कहर कीजिए।

शायद सुरूर-ए-दर्द भी बढ़ी जमाल चीज़ है,
मयस्सर नहीं है गर तो अभी मयस्सर कीजिए।

हो रही है लगातार जो अश्कबारी शबभर से,
इसमें अफसोस-ए-गुस्ताख़ी भीगकर कीजिए।

इस जाम-ए-जफा का नशा ही अलग है राही,
इस ज़ालिम मोहब्बत को घोषित ज़हर कीजिए।  #कश्ती_ए_उल्फत #ताकीद_ए_कहर #सुरूर_ए_दर्द  #अश्कबारी #शबभर  #अफसोस_ए_गुस्ताख़ी #जाम_ए_जफा
#राहीनामा