कितने मक़ान, कितनों की जान उठाएगी... ये ज़मीन कब तलक आसमान उठाएगी..। एक हीरा मिले बस इतनी सी ख़्वाहिश में... उम्मीद, कोयलॆ और खदान उठाएगी ..। माना कि,वक़्त ने सब घाँव भर दिए लेक़िन... याद ताउम्र बदन के निशान उठाएगी..। बड़ा लंबा सफ़र था जिंदग़ी थक गया हूँ... हमे लगता नहीं मौत थकान उठाएगी..। कल इसलिए एक मर्द ने औरत कुचल दी... अब नक़ाब उठाया,कल ज़बान उठाएगी..। जिंदग़ी ठुकराके दिलों ने ज़हर पी लिया... मोहब्बत उसूलों की दुकान उठाएगी..। - ख़ब्तुल संदीप बडवाईक ©sandeep badwaik(ख़ब्तुल) 9764984139 instagram id: Sandeep.badwaik.3 ख़्वाहिश