दीदार-ए-हालात कर मेरा, ग़ुरूर से वो हंसती है, दौलत की सेज पर, अधकच्ची नींद सोती है, मैं फ़कीर पर ग़ुरबत-ए-अज़ीम भी तकल्लुफ नहीं देती है, वो मल्लिका महल की, मेरी कलम रुलाती है साहब और वो रोती है।।। @ianilraj01 दीदार-ए-हालात कर मेरा, ग़ुरूर से वो हंसती है, दौलत की सेज पर, अधकच्ची नींद सोती है, मैं फ़कीर पर ग़ुरबत-ए-अज़ीम भी तकल्लुफ नहीं देती है, वो मल्लिका महल की, मेरी कलम रुलाती है साहब