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दर्पण क्यों देखूँ में जब सामने तुम हो दिख जाता है


दर्पण क्यों देखूँ में जब सामने तुम हो
दिख जाता है रूप मेरा ,तेरी आँखों में
जब पास में तुम हो, श्रृंगार नही तुझ से
बढ़कर , गहना मेरा  जीवन का तुम हो, 
रूप सजता है तुमसे मेरा , सच्चे मोती
से तुम हो, धन, दौलत की मुझे क्या 
जरूरत, साथ जब तुम्हारा हो, कट 
जायेगा ये जीवन, जब प्यार तुम्हारा साथ
मेरे हो, आँखों को नहीं मिलता चैन यहाँ
जब दूर तुम चले जाते हो, बेचैन रहती  है
सांसे ,धड़कन तुम साथ ले जाते हो.
प्रीत मेरी साची है तुमसे, परिमाप तुम्हे क्या
में दूँ, दिल दिया, धड़कन दिया, अब जाँ भी, 
तुम्हे सौंप देती है, अपने प्रीत की खातिर में
हर जख्म को फूल सा सह सकती हूँ.
दर्पण क्यों देखूँ में जब सामने तुम हो, 
 जाता है, रूप मेरा , तेरी आँखों में जब 
पास में तुम हो

©पथिक
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