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बारिश (2/2) हैरत है मेरे गालों से गर्दन और फिर सी

बारिश (2/2)

हैरत है मेरे गालों से गर्दन और फिर सीने से पैरो तक मैं भीग चुका था
मगर सर अब भी सूखा कैसे?
ना हवाओं में नमी थी ना मिट्टी की सौंधी महक
ना मेंढकों की टर्र टर्र, ना पंछियों की चहक
एक अजीब सा सन्नाटा था माहौल में
एक काग़ज़ की कश्ती भी दिखी जिसमें शायद मेरे अरमान सवार थे
कुछ दूर तो तैरी मगर फिर थोड़ा डगमगा कर वो भी गोता खा गई
ख़ैर अब जो मौसम कुछ खुला है, याद आया सिरहाना भी सुखाना है
नाजाने ये बेमौसम की बरसात थी या सावन बेईमान था
मगर बीती रात बारिश बहुत हुई बारिश

बीती रात बहुत बारिश थी
सिरहाने रखे सब कपड़े भीग गए
शायद जिस सावन का मुझे बेसब्री से इंतेज़ार था
उसमें फूलों के साथ काँटे भी खिले
अचम्भा इस बात का है कि
बूँदों से ज़्यादा सिसकियों का शोर था
बारिश (2/2)

हैरत है मेरे गालों से गर्दन और फिर सीने से पैरो तक मैं भीग चुका था
मगर सर अब भी सूखा कैसे?
ना हवाओं में नमी थी ना मिट्टी की सौंधी महक
ना मेंढकों की टर्र टर्र, ना पंछियों की चहक
एक अजीब सा सन्नाटा था माहौल में
एक काग़ज़ की कश्ती भी दिखी जिसमें शायद मेरे अरमान सवार थे
कुछ दूर तो तैरी मगर फिर थोड़ा डगमगा कर वो भी गोता खा गई
ख़ैर अब जो मौसम कुछ खुला है, याद आया सिरहाना भी सुखाना है
नाजाने ये बेमौसम की बरसात थी या सावन बेईमान था
मगर बीती रात बारिश बहुत हुई बारिश

बीती रात बहुत बारिश थी
सिरहाने रखे सब कपड़े भीग गए
शायद जिस सावन का मुझे बेसब्री से इंतेज़ार था
उसमें फूलों के साथ काँटे भी खिले
अचम्भा इस बात का है कि
बूँदों से ज़्यादा सिसकियों का शोर था