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अब कछु नाथ न चाहिअ मोरें। दीन दयाल अनुग्रह तोरें॥

अब कछु नाथ न चाहिअ मोरें।
दीन दयाल अनुग्रह तोरें॥
फिरती बार मोहि जो देबा।
सो प्रसादु मैं सिर धरि लेबा॥


अर्थ : जब प्रभु श्री राम केवट को उतराई देते हैं तब केवट हाथ जोड़कर प्रभु से कहता है: हे नाथ, आज मैंने क्या नहीं पाया, आपकी कृपा से मेरे सारे दोष, दुख समाप्त हो गये। हे दीनदयाल, अब मुझे कुछ नहीं चाहिए, लौटते समय आप जो कुछ भी देंगे मैं उसे प्रसाद समझ सिर चढ़ा लूंगा।

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  #Blossom #sambhu prashad sumati hiy Tulsi...
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#Blossom #sambhu prashad sumati hiy Tulsi... #पौराणिककथा

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