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प्रकृति और परमात्मा की हर एक कृति स्त्री, पुरुष, प

प्रकृति और परमात्मा की हर एक कृति स्त्री, पुरुष, पशु, वनस्पति, नाग, सागर, पर्वत, कंकर, नदी, की उपासना करने वाले लोगों में जब हिंसा,घरेलू हिंसा, उत्पीड़न, शोषण, बलात्कार, दहेज़ हत्या, लूट, भ्रष्टाचार जैसी विसंगतियों को देखता हूँ तो बस यही सोच कर रह जाता हूँ कि--- 

शिक्षा के नाम पर रटाए गए अध्याय विरलों को छोड़ कर अधिकतर ने पढ़ाई लिखाई को पैसा कमाने या पेट भरने तक सीमित रखा। भूँख बढ़ी और भ्रष्टाचार पनपने लगा। सुप्रभातम साथियो....🙏😊🙏🍵🍵
वैश्वीकरण के इस दौर की दौड़ में हम शामिल तो हुए लेकिन अभी तक दौड़ना शुरू नहीं किया है।
जहाँ दुनिया अपनी पूरी ताक़त से आगे बढ़ रही है वहीं हमारा देश अभी भी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए जद्दोजहद में है।

शिक्षा, चिकित्सा,तकनीकी,व्यापार में हमने सफलतायें तो निरंतर पायीं लेकिन हम अभी भी आत्मनिर्भर नहीं हुए।

हम दुनिया के लिए सबसे बडी संख्या में उपलब्ध उपभोक्ता और मज़दूर बन कर रह गए।
प्रकृति और परमात्मा की हर एक कृति स्त्री, पुरुष, पशु, वनस्पति, नाग, सागर, पर्वत, कंकर, नदी, की उपासना करने वाले लोगों में जब हिंसा,घरेलू हिंसा, उत्पीड़न, शोषण, बलात्कार, दहेज़ हत्या, लूट, भ्रष्टाचार जैसी विसंगतियों को देखता हूँ तो बस यही सोच कर रह जाता हूँ कि--- 

शिक्षा के नाम पर रटाए गए अध्याय विरलों को छोड़ कर अधिकतर ने पढ़ाई लिखाई को पैसा कमाने या पेट भरने तक सीमित रखा। भूँख बढ़ी और भ्रष्टाचार पनपने लगा। सुप्रभातम साथियो....🙏😊🙏🍵🍵
वैश्वीकरण के इस दौर की दौड़ में हम शामिल तो हुए लेकिन अभी तक दौड़ना शुरू नहीं किया है।
जहाँ दुनिया अपनी पूरी ताक़त से आगे बढ़ रही है वहीं हमारा देश अभी भी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए जद्दोजहद में है।

शिक्षा, चिकित्सा,तकनीकी,व्यापार में हमने सफलतायें तो निरंतर पायीं लेकिन हम अभी भी आत्मनिर्भर नहीं हुए।

हम दुनिया के लिए सबसे बडी संख्या में उपलब्ध उपभोक्ता और मज़दूर बन कर रह गए।