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एक कुम्हार घड़े को, पीट-पीट कर ही, तो उसे गढ़ता ह


एक कुम्हार घड़े को,
पीट-पीट कर ही, तो उसे गढ़ता है,
एक सुनार सोने को,
गलाकर ही तो,नगों को जड़ता है,
एक चित्रकार अपनी उमदा,
तस्वीरों को ही तो मढ़ता है,
तालाब में ठहरा हुआ,
पानी ही तो सड़ता है,
आखिर दोस्तों जिंदगी भी ऐसी ही है,,,,
आसमां से एक तारा,
 टूट भी जाए,तो फर्क किसको पड़ता है,
उसके टूटने से जिनकी इच्छाएं,
पुरी हो जाती न दोस्तों भूल जाते हैं वो लोग..
उन्ही इच्छाओं को पूरा करने के लिए
वो पूरी दुनिया से लड़ता है ।।

©Matangi upadhyay (चिंका)
  good-night 
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