Unsplash कभी लिखी थी मोहब्बत, अब फ़साना लिखता हूँ । साँसों की आवारगी में बसी, वो मुकम्मल तराना लिखता हूँ । न जाने कौन-सी वो घड़ी थी, बोतल दूर,बहुत दूर पड़ी थी । दो बूंद साक़ी ने क्या पिला दिए, होके इश्क़ में दीवाना लिखता हूँ । जख़्म,टीस,दर्द और चुभन, है उनको दिल से बार-बार नमन । मिले जो सौगात मेरी वफ़ा का, दिया उनका नज़राना लिखता हूँ । सुबह,कभी शाम,कभी रात दिखती थी, उल्टी दुनिया सरेआम दिखती थी । प्यार इक छलावा के सिवा कुछ भी नहीं, होके इश्क़ में सयाना लिखता हूँ । ©ANIL KUMAR,) #hindishayari #hindipoetry #anilkumar #anil_quotes #मेरीलेखनी✍️(अनिल कुमार)