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अच्छी लगती हो तुम, मैंने बस सिर्फ़ इतना कहा था। बद

अच्छी लगती हो तुम,
मैंने बस सिर्फ़ इतना कहा था।
बदले में इसके,उसने
 भी बस मुस्कुरा भर दिया था।

न दिल लगी थी कोई,
 न आशिक़ी का ही दिल को पता था।
पहले पहल उसके दिल
 में,पहली मोहब्बत का अंकुर खिला था।

फ़िर हम दोबारा मिले ,
 इस तरह खूब छिपके ज़माने से मिलते रहे।
कभी शाम को तो ,कभी 
रात भर, चांदनी संग तारों से खिलते रहे।

न आशियां की फिकर
 थी कोई ,न मंजिलों का ही कोई पता था।
आसमां के तले, उसकी 
जुल्फ़ों के साए में, रहने का घर मिल गया था।

©Anuj Ray
  पहली मोहब्बत का अंकुर खिला था
anujray7003

Anuj Ray

Bronze Star
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पहली मोहब्बत का अंकुर खिला था #लव

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