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शीर्षक- नव वर्ष लो फिर आ गया है नव वर्ष, दौड़ता

शीर्षक-  नव वर्ष 

लो फिर आ गया है नव वर्ष,
दौड़ता हुआ संकल्पों की गर्द से ढका।
पहाड़ी प्रदेशों में भेड़ चराता हुआ,
सड़क किनारे टुकड़े लोहे प्लास्टिक के चुनता।
भीड़ भरे चौराहे पर
वाहनों की रेलमपेल में कटोरी थामें,
चंद सिक्कों की खनक से मुस्काता।

लो फिर आ गया है नव वर्ष,
आंखों में जीजिविषा भरे
मेहनत से सरोकार 
साइकिल रिक्शा पर 
पसीने से लथपथ पैडल मारता।
पतासी के ठेले पर जीरा नमक
संग अपनी जठराग्नि से लड़ता।

लो फिर आ गया है नव वर्ष,
खेतों की मेड़ों से, हरी दूब पर
पूस की ठंड से विकल,
टखनों तक पानी में डूबा।
उम्मीद को पगड़ी में बांधे, 
रात गठरी सा ठिठुरता।

लो फिर आ गया है नव वर्ष,
दृढ़ निश्चय, कृत संकल्पित हो।
कुछ वादे, कुछ इरादे थामें।
कच्ची बस्ती से होता हुआ,
मध्यम वर्ग के गलियारों से
निकलकर सरकारी भवनों में।



डॉ. भगवान सहाय मीना
बाड़ा पदमपुरा,जयपुर, राजस्थान।

©Dr. Bhagwan Sahay Meena
  नव वर्ष 2024

नव वर्ष 2024 #कविता

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