कलमकार वो जब कभी यूं ही अकेला होता है, किस्मत ने हर बुरा खेल उससे ही खेला होता है। कहीं बैठ जाता है वो नदियों के किनारे, या फिर किसी रास्ते के बाजू में पेड़ के सहारे। चला जाता है शहर से काफी दूर शहर की तलाश में, उसे मिलेगा अपने सपनों का मंजर बस इसी विश्वास में। या जाकर कभी पहाड़ों में थोड़ी सैर कर लेता है, कभी-कभी वो अपनों से उलझ कर उन से बैर कर लेता है। उसकी घूरती निगाहें रहती है सामाजिक कायदों पर, खुद के निभाए और औरों के तोड़े गए वायदों पर। कभी तोड़ा जाता है कभी छोड़ा जाता है, हर वक्त उसके सपनों को उससे दूर मोड़ा जाता है। लेकिन वो किस्मत को कोसता नहीं बस मन ही मन सोचता है, बिखरते अरमानों के आंसुओं को कागज और कलम लेके पोछता है। उसके पास हर मुश्किलों को सुलझाने का आसार बेहिसाब होता है, उसके लिए एक छोटा सा उजाला भी उम्मीदों का नया आफताब होता है। यूं ही नहीं कहते जनाब कलमकार होना इतना आसान नहीं है, शायद आप और हम इन बातों से अनजान नहीं है। न जाने कितनी दफा नकारा जाता और बेकार होता है, तब जाके वो एक सफल "कलमकार" होता है। saurabh sharma ©Saurabh Sharma #nojotowriters