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आज जिंदगी ऐसी लग रही है। जैसे बादल के पिंजरे में च

आज जिंदगी ऐसी लग रही है। जैसे बादल के पिंजरे में चांद की तरह। बाहर आना-जाना तो है, लेकिन मिलना किससे  है। ये पता नहीं.. फिर  आकर बादलों के सम्मान घर की दीवारों  पिंजरे में कैद हो जाना।

©Nargis prajapat
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