एक सफ़्हा ही तो लिखा है नज़्मे-इंतज़ार का. कुछ आहों से, कुछ लिखकर मिटाए मिसरों से, कुछ दबी दबी मुस्कानों से... इज़हार की बिलकुल जल्दी मत करना अभी तो मज़ा आने लगा है.! दीवान अभी बना नहीं... The joy in waiting