वैसे तो गाँव से शहर, हर मंदिर हर पहर, देवियों का होता सम्मान है, फिर क्यूँ होता आ रहा है, घर घर में, औरत के अभिमान का अपमान है, ©Aradhana Mishra क्यूँ ये समाज मुझे अछूत कहलाए, मेरी पहचान, मेरे अस्तित्व पे, जब मर्जी कलंक लगाए, जीवन के हर मुस्किल पड़ाव पे, मेरे अहम मेरी आत्मा को ठेस पहुँचाए, मुझे अछूत कहलाए,