नारी___ सुबह से शाम और शाम से सुबह हो जाती लेकिन उफ्फ न करती अपनी जिम्मेदारियां काबिलता से उठाती घर ,दफ्तर ,पति ,बच्चे और नातेदारी सब को संभालती हंसते हंसते सुघड़,सुशील नारी माथे पर विश्वास की बिंदी लगाए जिम्मेदारियो को आंचल में संभालती जीवन की रफ्तार कदमों में हर एक चुनौती को समझदारी से निपटाती जीवन की डोर थामे निकली सुघड़, सुशील नारी कभी झुंझला भी जाती है कभी उकता भी जाती है कभी क्रोध स्वरूपा हो जाती अंगारी पर फिर भी विमुख न होती कर्तव्य से इतनी वो संस्कारी अनमोल रचना ईश्वर की सुघड़, सुशील नारी पोंछती माथे का पसीना लपेटती उलझनों को जूडे में घर से दफ्तर, दफ्तर से घर की दौड़ तय करती बेचारी पर अडीग फिर भी कर्तव्य मार्ग पर चिंगारी अनमोल रचना ईश्वर की सुघड़, सुशील नारी ।। __________सुषमा नैय्यर नारी___ सुबह से शाम और शाम से सुबह हो जाती लेकिन उफ्फ न करती अपनी जिम्मेदारियां काबिलता से उठाती घर ,दफ्तर ,पति ,बच्चे और नातेदारी सब को संभालती हंसते हंसते सुघड़,सुशील नारी