हर एक दिन जैसे, लगता एक साल है महीनों तक मिल नही पाते यही मलाल है। माना तुम्हारी भी अपनी मज़बूरी है, मगर दिल को भी तसल्ली देनी ज़रुरी है। हर घड़ी हर लम्हा, दिलोदिमाग में तेरा ही ख्य्याल कैसे कह दूँ मैं ऐ गुस्ताख़ दिल!ना कर मुझसे कोई सवाल अब मिलने की कोई तो तारीख़ मुक़र्रर कर दो, कम से कम एक ख़्वाहिश तो मुक़म्मल कर दो। जब तक ना मिले थे हम, तब तक और बात थी, कैसे भुला दू मैं!कितनी मन्नतों से मिली सौगात थी। सालभर से सख़्त गुज़ारा लंबा इन्तेज़ार दरमियाँ, बोलो ना! क्या कम है मेरे यार.….? ♥️ Challenge-587 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।