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पाखंडी बाबाजी के खुल रहे राज """"""""""""""""""""

 पाखंडी बाबाजी के खुल रहे राज
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धर्म का चोला ओढ़े, बैठे बाबाजी,
सत्य का पाठ पढ़ाएं, झूठ में रमा जी।
मंदिर में घंटी बजाएं, दान पेटी भरते,
जनता की भावनाओं से, खेल रचे सब करते।
आडंबर का ताज पहन, महल बनवाए,
आशीर्वाद की आड़ में, दौलत बढ़ाए।
संन्यासी की वाणी में, मिठास दिखाए,
भीतर का पाखंड, कोई समझ न पाए।
सत्य की राह से भटके, माया में उलझे,
धन के मोह में फंसे, धर्म से दूर भागे।
पर अब वक्त आ गया, सच का उजागर,
पाखंडी बाबाजी के, खुल रहे राज़ हर।
जनता जाग रही है, आँखें खोल रही,
धर्म के नाम पर, ठगी अब नहीं सह रही।
धर्म का असली अर्थ, सिखाएगा ये समाज,
सच्चे संतों का सम्मान, झूठे का परिहास।
तो जागो साथियों, और सच्चाई पहचानो,
पाखंडी बाबाजी से, अब दूर भागो।

©Balwant Mehta
  #BabaJi