सुबह उठा तो मैं वहीं था,,कल जीतना ही वक्त घडी में था,, मेरे कमरे में में सब कुछ वैसा ही था,,जैसा सोने से पहले मेरी आखों नें देखा था,,कुछ तो था जो कम था,,समझ नहीं आ रहा था क्या गुम था,,अचानक मेरी आखों ने तारीख को देखा,,फिर समझ आया मेरी जिन्दगी का एक दिन ,,,,,कम था,,,,, ©Rajeev Bhardwaj लेखक एक दिन #Shayari #rajbhardwaj