व्यथा कोंरोना लेकर आया संकट विकराल है, अर्थ व्यवस्था को बना दिया बदहाल है। शहरों में श्रमिकों पर टूटा जैसे पहाड़ है, तंगहाली ने खड़े कर दिए बड़े सवाल है। गांव आने को उमड़े श्रमिकों के जत्थे है, मीलों का सफर चल रहे पैदल निहत्ते है। रास्तों में झेल रहे असहनीय पीड़ा वेदना, दर्द से तन जख्मी हुए आहत हुई चेतना। चलते चलते पैरो में पड़ गए कई छाले है, कठिन सफर में पड़े निवालों के लाले है। प्राण बचाने को मिलते खास रखवाले है, बुरे वक्त में मानवता ने जीवन संभाले है। कई अभागे पथ में काल के ग्रास हो गए, माता पिता बेटों की वाट जोहते रह गए। बुरे वक़्त में बन रही दुख भरी कहानियां, विकट बक्त में मौत लील रही ज़िंदगियां। ऐसा समय कभी किसीने देखा नही था, वक्त इतना बुरा आ जाएगा सोचा न था। JP lodhi #वक्त की व्यथा