वो चाँद भी नहीं निकला मेरा, उसे कितनो ने सवारा था... कभी ईद का बना था कभी करवाचौथ पर आया था... निहार रही थी आँखे उसको, कुछ पलो के बाद अंधेरा साया था... तु भी निकला उस बेवफा की तरह, न जाने कितनो ने तुझको मेहबूब माना था... //diksha//