जाने कौन सी कशिश थी , गांव की उस मिट्टी में, शहर में जिसमे ज़हर घुला है, जहां हर अंकुर एक, उम्मीद जगाता था, यंहा हर शाम अब, बस गुज़र जाती है, वहां पूरा गांव घर था, यंहा तो कमरे भी अपने नहीं। जाने कौन सी कशिश थी, गांव की उस मिट्टी में जो हमेशा याद आती है। #parijat😊 #ek#khwaish#fir#se#bchpn