जो थे बचत के आने दो आने चले गये खुशियों को जुटाने में जमाने चले गये सोचा रहूँ सुकून से अपनों के साथ में फुर्सत मिली तो बच्चे कमाने चले गये। - देवेश द्विवेदी "देवेश"