Nojoto: Largest Storytelling Platform

अब रिश्ते में खामोसी सी आ रही है, अब डर भी लग रहा

अब रिश्ते में खामोसी सी आ रही है,
अब डर भी लग रहा है।
कही खोने की कवायद तो शुरू नहीं हो रही!
पता नहीं।
तुम्हे नहीं पता शायद ,
की हर गुस्ताखी के बाद का आलम क्या होता है 
किन्तु जब तुम गुस्साए आँखों से देखती हो और 
एक छरहरी मुस्कान के साथ लिपट जाती हो
तो मनो कृतज्ञता बरस पड़ती है।
त्रुटियों के इस प्रीतम से प्रीती तुमने लगाई ,
मै धन्य हुआ!
किन्तु मैंने क्या दिया एवज में?
ना ही असमर्थ हूँ न ही लाचार
बस खुद में थोडा उलझा हुआ हूँ
यही उलझन शायद लाचारी बन रही है
इस भंवर से कैसे निकलूं 
अकेला हो गया हूँ मैं।  
क्या करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा
पहले जैसा अब कुछ नहीं रहा शायद
न वो हर्ष न उत्साह न वो तड़प
न ही इस रिश्ते को सींचने की ताकत
कही किसी मोड़ पे अटक गया है कुछ शायद,
तलाश उसी की कर रहा हूँ।
साथ रहने  वाले से भी मदद मयस्सर 
नहीं हो रही।
इश्क़ बेपरवाह हो रहा है।
खुद को समेटते गुस्ताखियों से बचते
बड़े उत्साह के साथ खुश करने की ख्वाहिश लेकर जाता हूँ पास उसके।
लेकिन धराशाई हो जाता हूँ एक ही चोट पर।
क्या करूँ?
मैं क्या करूँ?
कुछ समझ नहीं आ रहा।
कुछ समझ नहीं आ रहा।
दर्द असहनीय हो रहा है,
रोक लो,
 कहीं रो न पडूँ मैं।I
मत खींचो इस नाजुक डोर को,
खुशियाँ,सपने कही बिखर जाये न टूट के।
आओ सब कुछ भूलकर साथ चलने की कोशिश करें,
सभी उलझनों को सुलझाने की  कोशिश करें।
सभी उलझनों को सुलझाने की कोशिश करें।
                                   मनीष#







 #NojotoQuote कशमकश।।।
mann#02
अब रिश्ते में खामोसी सी आ रही है,
अब डर भी लग रहा है।
कही खोने की कवायद तो शुरू नहीं हो रही!
पता नहीं।
तुम्हे नहीं पता शायद ,
की हर गुस्ताखी के बाद का आलम क्या होता है 
किन्तु जब तुम गुस्साए आँखों से देखती हो और 
एक छरहरी मुस्कान के साथ लिपट जाती हो
तो मनो कृतज्ञता बरस पड़ती है।
त्रुटियों के इस प्रीतम से प्रीती तुमने लगाई ,
मै धन्य हुआ!
किन्तु मैंने क्या दिया एवज में?
ना ही असमर्थ हूँ न ही लाचार
बस खुद में थोडा उलझा हुआ हूँ
यही उलझन शायद लाचारी बन रही है
इस भंवर से कैसे निकलूं 
अकेला हो गया हूँ मैं।  
क्या करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा
पहले जैसा अब कुछ नहीं रहा शायद
न वो हर्ष न उत्साह न वो तड़प
न ही इस रिश्ते को सींचने की ताकत
कही किसी मोड़ पे अटक गया है कुछ शायद,
तलाश उसी की कर रहा हूँ।
साथ रहने  वाले से भी मदद मयस्सर 
नहीं हो रही।
इश्क़ बेपरवाह हो रहा है।
खुद को समेटते गुस्ताखियों से बचते
बड़े उत्साह के साथ खुश करने की ख्वाहिश लेकर जाता हूँ पास उसके।
लेकिन धराशाई हो जाता हूँ एक ही चोट पर।
क्या करूँ?
मैं क्या करूँ?
कुछ समझ नहीं आ रहा।
कुछ समझ नहीं आ रहा।
दर्द असहनीय हो रहा है,
रोक लो,
 कहीं रो न पडूँ मैं।I
मत खींचो इस नाजुक डोर को,
खुशियाँ,सपने कही बिखर जाये न टूट के।
आओ सब कुछ भूलकर साथ चलने की कोशिश करें,
सभी उलझनों को सुलझाने की  कोशिश करें।
सभी उलझनों को सुलझाने की कोशिश करें।
                                   मनीष#







 #NojotoQuote कशमकश।।।
mann#02