मैं जो खुलकर कहना चाहूं शायद कहना पाऊं अभी आप सब ही तो समझदार हैं जानते हैं इशारे सभी अंधेरे जगत में किरणों से उजाला कर देता है रवि खामोश एहसासों को शब्दों में बयां करता है कवि दूर से जो दिखती है, पास से कुछ और होती है छवि सिर्फ मैंने नहीं आपने भी महसूस किया होगा कभी सिले लवों के पीछे कुछ रोष की आवाजें हैं दबी जो झकझोरतीं हैं जमीर को, क्यूं नहीं बोले तभी आप आज तू हैं , कुछ दिनों पहले तक इक नाम थे उससे पहले साहब कहकर भी पुकारा गये होंगे कभी इक सवाल था जिसका कोई जबाव नहीं , क्या ओहदा और रुतबा बढ़ जाये, तो तमीज़ भुला देता है सभी ओहदा