तेरे बिन बहते अश्रुजल। गा रहे बिरह की एक गजल। प्रेम- प्रणय के प्रेम -भंवर में प्रेम -रस बरसाते हैं। कितने ग़मों सितम सह जाते हैं। तुम क्या जानो अपने दिल को कितना समझाते हैं। तुम क्या समझो तुम बिन कैसे रह पाते हैं। प्रेम ताप में तपे हुए तेरे बिन नहीं जीना है । बढ़ता जाता दर्दो गम पहले से ज्यादा दूना है रातें दिन कटते नहीं घर आंगन सूना है। चाहे हों कितने लाख सितम तेरे बिन नहीं रहना है। कवि:- शैलेन्द्र सिंह यादव #NojotoQuote शैलेन्द्र सिंह यादव की कविता प्रेम बिरह