ये कैसा रिवाज़ है ये कैसा दस्तूर है मेरे मौला, वो नस नस में समाया है और वही आँखों से दूर है मेरे मौला। एक बार नहीं दो बार नहीं जाने कितनी बार मरा हु मैं, ऐसा क्या गुनाह है ऐसा क्या कसूर है मेरे मौला। घुटन है चुभन है तन्हाई है बेचैनी है पागलपन है जाने क्या क्या है, थोड़ी रहम कर मुझपर बड़ी तकलीफ है मेरे मौला। किस तरह की दुनिया है तेरी ये कैसा इंसाफ है, मर मर कर जीने को इंसान क्यों मजबूर है मेरे मौला। हो जाऊंगा पागल या कर लूंगा खुदखुशी, ये दर्द मेरे बर्दास्त के अब बाहर है मेरे मौला | #kaisa#riwaz#dastoor