नमस्कार जी यह पंक्तियां जयशंकर प्रसाद जी की हैं जो इस प्रकार हैं बीती विभावरी जाग री अंबर पनघट में डुबो रही तारा घट उषा नागरी बीती विभावरी जाग री खग कुल कुल कुल सा बोल रहा, किसलय का अंचल डोल रहा लो यह लतिका अभी भर लाई नवल मुकुल रस गागरी बीती विभावरी जाग री कवि जयशंकर प्रसाद