अपेक्षाएं मिटा देती हैं मिठास, समझता हूं मैं जब भी तेरी फीकी पड़ी यादों से गुजरता हूं मैं थक गया हूं पिंजरे की दीवारों से टकरा-२ कर परिंदों के मानिंद क़ैद में बेबस और तन्हा हूं मैं सोचता हूं अब एक कॉपी भी अपने पास रखूं जिस में अपनी हर एक सांस का हिसाब रखूं तेरे बगैर जो ली गयी,रुकी रही या छोड़ दी मैंने उन हर सांसों की सब वजहें साफ- साफ रखूं भटकता है मन, न मालूम इसे तलाश क्या है किस मंजिल को पाना है,पाने का रास्ता क्या है तुम को पुकारना है भी तो पुकारें किस हक से मुझे पता ही नहीं अब तुमसे मेरा रिश्ता क्या है! अनकही या मन की कही,जो कह न सके वो भी सही अनजान अनिश्चित काल में यह भी सही ,वह भी सही #jayakikalamse #yqdidi #yqbaba #yqaestheticthoughts #yqhindi