समस्या का मूल कहाँ हैं, समस्या का हल कहाँ हैं, यक्ष चिंतन हैं, लगाये बहुतेरे तीर तरकश के, फिर भी समाधान क्यों दूर है। कौन हैं मसीह, कितना सुदूर हैं, कैसे उतरू अंतस में, दुविधाओं का तिमिर घना हैं, टुटती एकाग्रता बढ़ती व्यग्रता से, मन सना हैं, कुछ तो कारण विशेष हैं,अकारण नहीं मन का मन से विद्वेष हैं जीवन रण में गति विराम हैं, संघर्ष की साँझ में, कहाँ हल हैं मेरे राम। रोहित तिवारी ।