फ़िर उन्ही वादियों में आओ कोई शाम गुज़ारें तुम हम को मनाओ हम तुम को मना लें जो बीत गया वो पल न आएगा वापस कभी गुज़िश्ता पलों से आओ कुछ पल चुरा लें ज़िन्दगी ने दिए हैं बेहिसाब दर्द मुझको यहाँ ए हमनवां मुझको अपनी आग़ोश में छुपा ले महलों में भी नहीं मिला सुकून ज़िन्दगी का मिलकर हम मिट्टी का आओ एक घर बना लें फ़रोज़ाँ हो जाता हूँ जब तुम होती हो पास मेरे मुक़द्दस शम'आ मुहब्बत की आओ फ़िर जला लें पुर-ख़ुलूस है इश्क़ तेरा, इतबार है मुझे 'सफऱ' की चाहत है तू, उसे तू अपना बना ले 🔹आओ कोई शाम गुजारें🔹 गुज़िश्ता- past फ़रोज़ाँ- luminous मुक़द्दस- पवित्र पुर-ख़ुलूस- sincere