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इकतरफा था इश्क... मुझ पर ये इल्ज़ाम रह गया, ना जा

इकतरफा था इश्क... मुझ पर ये इल्ज़ाम रह गया, 
ना जाने कैसे फ़िर तेरी नज़्मों में मेरा नाम रह गया,

बोझिल सांसें ढूंढती रहती है तुम्हें अक्सर, 
सोचती हूं बाकी अब मुझ से क्या काम रह गया,

मयखाने में मैंने पी है तन्हाई इस कदर 
मोहब्बत का तुजसे पीना आख़िरी जाम रह गया,

इक ख़्याल जो पहुंच ना पाया रूह तलक तेरी, 
मैंने पुकारा था तुझे वो बनके मेरा तकिया कलाम रह गया,

इकतरफा था इश्क... मुझ पर ये इल्ज़ाम रह गया,
ना जाने कैसे फ़िर तेरी नज़्मों में मेरा नाम रह गया,

©Rishika Roy
  



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