शब्द छिपकर भाव में पीड़ा कहेंगे क्या कहेंगे तुमने कैसे सोच कर रक्खा तुम्हारे बिन रहेंगे रात की आधी अधूरी सिसकियां बोलेंगी कैसे जख्म की या घाव की ये ग्रंथियां खोलेंगी कैसे पीर ये कैसे हमारे उर के अंदर रह सकेगी मौन होंगे शब्द गर तो भाव कैसे कह सकेगी