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जीवात्मा अपना स्वयं का मित्र है और शत्रु भी। यह त

जीवात्मा अपना स्वयं का मित्र है 
और शत्रु भी। यह तो जीवात्मा 
को तय करना है कि वह 
स्वयं के लिए क्या 
चाहता है-पुनर्जन्म 
या
 इससे मुक्ति।
जीवात्मा अपना स्वयं का मित्र है 
और शत्रु भी। यह तो जीवात्मा 
को तय करना है कि वह 
स्वयं के लिए क्या 
चाहता है-पुनर्जन्म 
या
 इससे मुक्ति।