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वो बंद कमरा और वो सात दिन बड़े ही पृथक थे, निशब्द

वो बंद कमरा और वो सात दिन 
बड़े ही पृथक थे, निशब्द,चुपचाप दिन,

संघर्ष तन मन का था जारी,
 गिर के खड़े होने की आई थी बारी,

 पूरी शक्ति संजो के मन पर काबू पाया,
 तन की पीड़ा को थोड़ा सा बिसराया,

 हिम्मत मेरी देखकर हर कोई हैरान था,
मेरी इस जीत पर सब को होता गुमान था,

खुद अपने ही पैरों पे मैं अब खड़ी थी,
 ये जंग जीतने की इक होड लग पड़ी थी,

 बीमारी ने काया को बांध सा लिया था,
 मनोबल को तोड़ने  का वादा किया था,
मेरे मनोबल को कम ना कर पाई,
अलग सी एक ऊर्जा थी दिल में समाई,

 नहीं थी खबर उसको किस से थी वो टकराई,
 साथ ही दिनों में उसने मुंह की थी खाई,

उन सातों दिनों में हुई उससे बातें,
 कई दिन तो मैंने थे दर्द में काटे,
उस दर्द ने मुझे कुंदन सा चमकाया,
एक अनोखा सा साहस जीने का फिर आया,

उन सात दिनों ने मुझको ये सिखलाया -
कि बस मानने की बात है,
 दिल में ठान ने  की बात है, 
 कुछ पल की अंधेरी रात है,
 सुधरता हर बुला बुरा हालात है!!!!
-नीलम भोला अस्पताल के सात दिन
वो बंद कमरा और वो सात दिन 
बड़े ही पृथक थे, निशब्द,चुपचाप दिन,

संघर्ष तन मन का था जारी,
 गिर के खड़े होने की आई थी बारी,

 पूरी शक्ति संजो के मन पर काबू पाया,
 तन की पीड़ा को थोड़ा सा बिसराया,

 हिम्मत मेरी देखकर हर कोई हैरान था,
मेरी इस जीत पर सब को होता गुमान था,

खुद अपने ही पैरों पे मैं अब खड़ी थी,
 ये जंग जीतने की इक होड लग पड़ी थी,

 बीमारी ने काया को बांध सा लिया था,
 मनोबल को तोड़ने  का वादा किया था,
मेरे मनोबल को कम ना कर पाई,
अलग सी एक ऊर्जा थी दिल में समाई,

 नहीं थी खबर उसको किस से थी वो टकराई,
 साथ ही दिनों में उसने मुंह की थी खाई,

उन सातों दिनों में हुई उससे बातें,
 कई दिन तो मैंने थे दर्द में काटे,
उस दर्द ने मुझे कुंदन सा चमकाया,
एक अनोखा सा साहस जीने का फिर आया,

उन सात दिनों ने मुझको ये सिखलाया -
कि बस मानने की बात है,
 दिल में ठान ने  की बात है, 
 कुछ पल की अंधेरी रात है,
 सुधरता हर बुला बुरा हालात है!!!!
-नीलम भोला अस्पताल के सात दिन
neelambhola8156

Neelam bhola

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