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"स्वयंसिद्धा :एक टुकड़ा धूप" पुस्तक में मेरी वो कहा

"स्वयंसिद्धा :एक टुकड़ा धूप" पुस्तक में मेरी वो कहानियां है जिनके पात्र हमेशा ही मुझसे कुछ कहते रहे है और जिनके बारें में मैं कभी खुलकर कह नहीं सकीI इन कहानियों के माध्यम से मैंने समाज के उन लोगों के बारें में कहने की कोशिश की है जो हमारे साथ होते हुए भी, हमारे आस पास होते हुए भी किसी से अपना दुःख बाँट नहीं पाते...आप ये किताब किंडल पर पढ़ सकते है "स्वयंसिद्धा :एक टुकड़ा धूप" पुस्तक में मेरी वो कहानियां है जिनके पात्र हमेशा ही मुझसे कुछ कहते रहे है और जिनके बारें में मैं कभी खुलकर कह नहीं सकीI इन कहानियों के माध्यम से मैंने समाज के उन लोगों के बारें में कहने की कोशिश की है जो हमारे साथ होते हुए भी, हमारे आस पास होते हुए भी किसी से अपना दुःख बाँट नहीं पाते...आप ये किताब किंडल पर पढ़ सकते है लिंक है...-https://www.amazon.in/dp/B088FTML9V/ref=sr_1_1?dchild=1&qid=1589201224&refinements=p_27:Dr.+Manjari+Shukla&s=digital-text&sr=1-1&text
"स्वयंसिद्धा :एक टुकड़ा धूप" पुस्तक में मेरी वो कहानियां है जिनके पात्र हमेशा ही मुझसे कुछ कहते रहे है और जिनके बारें में मैं कभी खुलकर कह नहीं सकीI इन कहानियों के माध्यम से मैंने समाज के उन लोगों के बारें में कहने की कोशिश की है जो हमारे साथ होते हुए भी, हमारे आस पास होते हुए भी किसी से अपना दुःख बाँट नहीं पाते...आप ये किताब किंडल पर पढ़ सकते है "स्वयंसिद्धा :एक टुकड़ा धूप" पुस्तक में मेरी वो कहानियां है जिनके पात्र हमेशा ही मुझसे कुछ कहते रहे है और जिनके बारें में मैं कभी खुलकर कह नहीं सकीI इन कहानियों के माध्यम से मैंने समाज के उन लोगों के बारें में कहने की कोशिश की है जो हमारे साथ होते हुए भी, हमारे आस पास होते हुए भी किसी से अपना दुःख बाँट नहीं पाते...आप ये किताब किंडल पर पढ़ सकते है लिंक है...-https://www.amazon.in/dp/B088FTML9V/ref=sr_1_1?dchild=1&qid=1589201224&refinements=p_27:Dr.+Manjari+Shukla&s=digital-text&sr=1-1&text