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।।श्री हरिः।। 52 - सखा सत्कार कन्हाई की वर्षगांठ

।।श्री हरिः।।
52 - सखा सत्कार

कन्हाई की वर्षगांठ है। इस जन्मदिन का अधिकांश संस्कार पूर्ण हो चुका है। महर्षि शाण्डिल्य विप्रवर्ग के साथ पूजन-यज्ञादि सम्पन्न कराके, सत्कृत होकर जा चुके है। गोपों ने, गोपियों ने अपने उपहार व्रजनव-युवराज को दे दिये हैं। अब सखाओं की बारी है।

कन्हाई के सखा भी उपहार देगें; किन्तु ये गोपकुमार तो अपने अनुरूप ही उपहार देने वालें हैं। रत्नाभरण, मणियाँ, बहुमूल्य वस्त्र, नाना प्रकार के खिलौने तो बड़े गोप, गोपियाँ - दुरस्थ गोष्ठों के गोप भी लाते हैं; किन्तु गोपकुमारों का उपहार इन सबसे भिन्न है।

'कनूँ! मैं भी तुझे टीका लगाऊंगा।' यह आया भद्र। यह श्याम के जन्मदिन पर सदा ऐसे ही आता है - 'मेरे समीप तो कुछ है नहीं; तेरी ही कामदा के गोबर का टीका लगा दूँ तुझे?'
anilsiwach0057

Anil Siwach

New Creator

।।श्री हरिः।। 52 - सखा सत्कार कन्हाई की वर्षगांठ है। इस जन्मदिन का अधिकांश संस्कार पूर्ण हो चुका है। महर्षि शाण्डिल्य विप्रवर्ग के साथ पूजन-यज्ञादि सम्पन्न कराके, सत्कृत होकर जा चुके है। गोपों ने, गोपियों ने अपने उपहार व्रजनव-युवराज को दे दिये हैं। अब सखाओं की बारी है। कन्हाई के सखा भी उपहार देगें; किन्तु ये गोपकुमार तो अपने अनुरूप ही उपहार देने वालें हैं। रत्नाभरण, मणियाँ, बहुमूल्य वस्त्र, नाना प्रकार के खिलौने तो बड़े गोप, गोपियाँ - दुरस्थ गोष्ठों के गोप भी लाते हैं; किन्तु गोपकुमारों का उपहार इन सबसे भिन्न है। 'कनूँ! मैं भी तुझे टीका लगाऊंगा।' यह आया भद्र। यह श्याम के जन्मदिन पर सदा ऐसे ही आता है - 'मेरे समीप तो कुछ है नहीं; तेरी ही कामदा के गोबर का टीका लगा दूँ तुझे?'

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