ज़ख़्म दिलों के यूँही भरते नही, मरहम को तरसता मैं भी हूँ मरहम को तरसती है वो भी! उसका दर्द मिटाऊँ कैसे? गिला यूँ ख़ुद से हो गया है, ख़फ़ा मैं खुद से हो गया हूँ बेदर्द बनकर दर्द दिया यूँ, उसको सुकून पहुंचाऊँ कैसे? ज़िंदगी मेें बड़े दुःख देखे उसने, कहीं ना कहीं ज़िम्मेदार मैं भी भूलती नही वो एहसास मेरा, दिल से उसे भुलाऊँ कैसे? सताया है हर पल उसे मेंने, एक पल का सुकून नही दिया ग़लती नही पाप है, ज़हन से जाता नही,अपराध बोध मिटाऊँ कैसे? ♥️ Challenge-962 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।