मेरे दिल के अंदर जो झांके कोई तो वो समझे कि क्या अब मैं बनने लगा हूं । समझता हो जो मुझको पत्थर का पुतला वो देखें मुझे, अब मैं जलने लगा हूं। खुशी क्या है ? ग़म क्या है? अब कुछ खबर ना, मैं शायद फ़कीरों सा लगनें लगा हूं। ये शोहरत नही है ये दौलत नही है, मेरे मन के मंज़र बदलने लगा हूं। भला तुम कैसे जानोगे क्या थी मेरी दुनिया मैं उनके नशे से संभलने लगा हूं। वो ठुकरा कर समझा वो बेख़ुद हुआ है, मैं ख़ुद बेख़ुदी में मचलने लगा हूं। जो हो मेरी मंज़िल का कोई ठिकाना मैं सड़कों पे पागल सा चलने लगा हूं। यही मेरी किस्मत का लिक्खा है शायद मैं ज़ालिम था पहले, पिघलने लगा हूं। #OldOne