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तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय, कबहुँ उड

तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।
 
कबीर दास ਪਵਿੱਤਰ"קคคקเ"✝
तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।
 
कबीर दास ਪਵਿੱਤਰ"קคคקเ"✝