रिश्तों की डोर में हर गांठ इक़ तजुर्बा है जो खोल के सुलझा सका अक्लमंद है बंध गया कोई जो इन गांठों के बंधन में राह ए ज़िंदगी फिर उसके लिए बन्द है . धीर गांठ