बस मुरारी.. यही तो नही हो पा रहा.. कुछ कर यों ही उभार ले कृष्ण... सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥ (अठारहवां अध्याय,श्लोक 66) भवार्थ :- (हे अर्जुन) सभी धर्मों को त्याग कर अर्थात हर आश्रय को त्याग कर केवल मेरी शरण में आओ, मैं (श्रीकृष्ण) तुम्हें सभी पापों से मुक्ति दिला दूंगा,इसलिए शोक मत करो । #YourQuoteAndMine Collaborating with श्री मद्भगवद्गीता