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खिड़कियों के परदों पे,सदियों की कहानीयाँ हैं शाम सह

खिड़कियों के परदों पे,सदियों की कहानीयाँ हैं
शाम सहर दरो दिवारें सभी खामोश हैं
कभी माँ हटाती थी,लगाती थी तमाम परदे
आज खिड़कियों पे विरानियाँ है, दर पे तन्हाइयाँ हैं

हर रोज मेरी अंगड़ाइयों से गुजरता था सुरज
अहिस्ता झाकती थी हवा मेरे कमरे मे
माँ के वजूद की आज भी मेरे घर मे  परछाइयाँ हैं
 गुलाब सी पंखुड़ियों पे अधरों की अब भी निशानियाँ हैं

शाम को सितारे बरसते थे मेरे छत पे
और झुमती थी जमीं माँ के हाथों के पखें संग
कोयल खामोश हो सुनती लोरियों के स्वरबंध को
जर्रे जर्रे मे आज भी राजा रानी की वो कहानियाँ हैं
माँ नहीं है मेरे कमरे मे तन्हा विरानियाँ हैं
खिड़कियों के परदे पे सदियो की कहानियाँ हैं
राजीव Robin Katyan Visu Joshi Dipak Maurya Princesslappi Karma
खिड़कियों के परदों पे,सदियों की कहानीयाँ हैं
शाम सहर दरो दिवारें सभी खामोश हैं
कभी माँ हटाती थी,लगाती थी तमाम परदे
आज खिड़कियों पे विरानियाँ है, दर पे तन्हाइयाँ हैं

हर रोज मेरी अंगड़ाइयों से गुजरता था सुरज
अहिस्ता झाकती थी हवा मेरे कमरे मे
माँ के वजूद की आज भी मेरे घर मे  परछाइयाँ हैं
 गुलाब सी पंखुड़ियों पे अधरों की अब भी निशानियाँ हैं

शाम को सितारे बरसते थे मेरे छत पे
और झुमती थी जमीं माँ के हाथों के पखें संग
कोयल खामोश हो सुनती लोरियों के स्वरबंध को
जर्रे जर्रे मे आज भी राजा रानी की वो कहानियाँ हैं
माँ नहीं है मेरे कमरे मे तन्हा विरानियाँ हैं
खिड़कियों के परदे पे सदियो की कहानियाँ हैं
राजीव Robin Katyan Visu Joshi Dipak Maurya Princesslappi Karma