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Pratibha Ka Big Boss Date-29-7-2021 World Tiger Da

Pratibha Ka Big Boss
Date-29-7-2021
World Tiger Day
लघुकथा
शीर्षक- "बाघ का दर्द "
                    पिछले दिनों मैं कुछ दोस्तों के साथ जंगल भ्रमण करने गया था। जंगल के अंदर ही गेस्ट हाउस में हम लोग ठहरे थे। दिन भर के भ्रमण के बाद शाम में खाना खाकर  रात में हम लोग जल्दी ही सो गए। क्योंकि सुबह जल्दी ही जंगल के दूसरी तरफ भ्रमण को जाना था।
               करीब आधी  रात को खिड़की  पर खट-खट, थप-थप की आवाज से मेरी नींद टूट गई। जब मैं खिड़की की तरफ देखा तो मेरे होश गुम हो गए। चाँदनी रात में स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि एक बाघ खिड़की पर इशारे से बुला रहा है । मुझे उसके तरफ जाने का साहस नहीं हो रहा था। मेरे शरीर में कोई हरकत न होते देख बाघ बोला-" डरिये नहीं, मैं किसी को मारकर खाने नहीं आया हूं । आपसे जंगल वासियों की कुछ बातें सुनाने आया हूं, ताकि आप यहाँ से जाकर अपनी बिरादरी वालों को लिखकर या कहकर  हमारी दास्तान सुना सकें। हम जानवर मनुष्यों का अहित कभी नहीं चाहते। आपकी बिरादरी वाले ही हमें बेवजह परेशान करते रहते हैं । रोज हमारे साथी कभी गोली का शिकार,तो कभी ट्रेन का शिकार, तो कभी किसी अन्य वाहन का शिकार, होते रहते हैं। कभी हमारे जंगल काटे जाते हैं तो कभी जंगल में बिजली के नंगे तार बिछाए जाते हैं। दिन में आप सब दर्शक लोग परेशान करते हैं। तो रात में  तेज आवाज में चलने वाली गाड़ियां। हमें चैन की दो घड़ी भी नसीब नहीं होती। हमारे साथी कभी खाल के लिए मारे जाते हैं तो कभी मांस के लिए। आप लोगों का परिवार  बढ़ता है तो जंगल पहाड़ उजाड़ कर  घर बनाते हैं। नई बस्तियाँ बनाते हैं। तो फिर हम कहाँ जायेंगे। ऐसे में अगर हमारा कोई साथी आत्म रक्षार्थ आप मनुष्य पर हमला कर देता है तो उसे आदमखोर करार देकर मौत का फरमान जारी कर दिया जाता है। क्या कभी किसी शिकारी के साथ ऐसा हुआ है? नहीं ! उसे तो आपलोग बहादुरी के ईनाम से नवाजते हैं। अपना परिवार  बढ़ाने के लिए आप लोग तो हमारा बंशज ही खत्म करने पर तुले हैं। हमलोग तो स्वयं आप मनुष्यों से डरते हैं । हमलोग आदमखोर क्या होंगे।।     
           इतना कह  बाघ चुप हो गया। मैंने डरते-डरते उससे कहा -"आपकी बातें  सवा सोलह आने सच है। मैं जरूर आपकी बात को अपनी बिरादरी तक पहुंच जाऊंगा। देखें उन्हें कब सद्बुद्धि आती है। और कब आपलोगों को तंग करना छोड़ेंगे।"
             इसके बाद बाघ जंगल में चला गया। चाँदनी रात में मैं उसे दूर तक जाते हुए तब तक देखता रहा। जब तक कि वह आंखों से ओझल न हो गया।

दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश" कलकत्ता

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#pratibha_writer_community 
#pratibha_ka_bigboss

#Dailychallenge   #Nature #Beautiful  #Love  #Nojoto  #story #wildlife  

#WalkingInWoods  Girish Amit Kumar Yadav Neer  gudiya  Radhe manju
Pratibha Ka Big Boss
Date-29-7-2021
World Tiger Day
लघुकथा
शीर्षक- "बाघ का दर्द "
                    पिछले दिनों मैं कुछ दोस्तों के साथ जंगल भ्रमण करने गया था। जंगल के अंदर ही गेस्ट हाउस में हम लोग ठहरे थे। दिन भर के भ्रमण के बाद शाम में खाना खाकर  रात में हम लोग जल्दी ही सो गए। क्योंकि सुबह जल्दी ही जंगल के दूसरी तरफ भ्रमण को जाना था।
               करीब आधी  रात को खिड़की  पर खट-खट, थप-थप की आवाज से मेरी नींद टूट गई। जब मैं खिड़की की तरफ देखा तो मेरे होश गुम हो गए। चाँदनी रात में स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि एक बाघ खिड़की पर इशारे से बुला रहा है । मुझे उसके तरफ जाने का साहस नहीं हो रहा था। मेरे शरीर में कोई हरकत न होते देख बाघ बोला-" डरिये नहीं, मैं किसी को मारकर खाने नहीं आया हूं । आपसे जंगल वासियों की कुछ बातें सुनाने आया हूं, ताकि आप यहाँ से जाकर अपनी बिरादरी वालों को लिखकर या कहकर  हमारी दास्तान सुना सकें। हम जानवर मनुष्यों का अहित कभी नहीं चाहते। आपकी बिरादरी वाले ही हमें बेवजह परेशान करते रहते हैं । रोज हमारे साथी कभी गोली का शिकार,तो कभी ट्रेन का शिकार, तो कभी किसी अन्य वाहन का शिकार, होते रहते हैं। कभी हमारे जंगल काटे जाते हैं तो कभी जंगल में बिजली के नंगे तार बिछाए जाते हैं। दिन में आप सब दर्शक लोग परेशान करते हैं। तो रात में  तेज आवाज में चलने वाली गाड़ियां। हमें चैन की दो घड़ी भी नसीब नहीं होती। हमारे साथी कभी खाल के लिए मारे जाते हैं तो कभी मांस के लिए। आप लोगों का परिवार  बढ़ता है तो जंगल पहाड़ उजाड़ कर  घर बनाते हैं। नई बस्तियाँ बनाते हैं। तो फिर हम कहाँ जायेंगे। ऐसे में अगर हमारा कोई साथी आत्म रक्षार्थ आप मनुष्य पर हमला कर देता है तो उसे आदमखोर करार देकर मौत का फरमान जारी कर दिया जाता है। क्या कभी किसी शिकारी के साथ ऐसा हुआ है? नहीं ! उसे तो आपलोग बहादुरी के ईनाम से नवाजते हैं। अपना परिवार  बढ़ाने के लिए आप लोग तो हमारा बंशज ही खत्म करने पर तुले हैं। हमलोग तो स्वयं आप मनुष्यों से डरते हैं । हमलोग आदमखोर क्या होंगे।।     
           इतना कह  बाघ चुप हो गया। मैंने डरते-डरते उससे कहा -"आपकी बातें  सवा सोलह आने सच है। मैं जरूर आपकी बात को अपनी बिरादरी तक पहुंच जाऊंगा। देखें उन्हें कब सद्बुद्धि आती है। और कब आपलोगों को तंग करना छोड़ेंगे।"
             इसके बाद बाघ जंगल में चला गया। चाँदनी रात में मैं उसे दूर तक जाते हुए तब तक देखता रहा। जब तक कि वह आंखों से ओझल न हो गया।

दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश" कलकत्ता

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