ऐ श्मशान की लकड़ी तू किस तरह शरीर को जलाती है तू खुद राख होती है या शरीर को राख करती है असल मयाने मे देखा जाये तो तू ही है जो मेरे साथ राख होती है ©Himshree verma #श्मशान की लकड़ी मेरे अल्फ़ाज़